जैविक कृषि और ग्रामीण स्वावलंबन
- डॉ. मनोज चतुर्वेदी
भारत गांवों का देश है जहां कि 70 प्रतिशत जनसंख्या आज भी गांवों में रहती है। यह ठीक है कि भूमंडलीकरण तथा उदारीकरण
अर्थव्यवस्था में ग्रामीण जनता का शहरों की तरफ बहुत तेजी से पलायन हो रहा
है तथा हो चुका है। इसका मतलब यह नहीं है कि देश की छह लाख से ज्यादा
जनसंख्या गांवों में से समाप्त हो चुकी है। यह ठीक है कि विकास के नाम पर
गांवों को शहरों के रूप में बदलने का प्रयास अनवरत जारी है तथा दिल्ली-एन सी आर जैसे शहरों का बहुत तेजी से विकास हुआ है। जहां पर विकास के नाम पर नंदीग्राम तथा सिगुर जैसे विवादित स्थल भारतीय क्षितिज पर दिखाई दे रहे हैं वहीं पर झारखंड, छत्तीसगढ़ तथा उड़ीसा के ऐसे गांव दिखाई पड़ रहे हैं। जहां पर कभी-कभार ग्रामीणों का गुस्सा सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों पर दिखाई पड़ता है। वस्तुतः भूमंडलीकरण तथा उदारीकरण के नाम पर गांवों का सत्यानाश करके अपनी झोली भरने का प्रयास जारी है। देश के राजनीतिज्ञों को 20 रुपये पर गुजर-बसर करने वाली जनता से कुछ लेना-देना नहीं है लेकिन आज वही जनता राजनीतिज्ञों के लिए थोक वोट बैंक है तथा वहीं वे जाते हैं।
राजनैतिक दलों तथा सामंतों द्वारा फैलाई गई ‘सेज’ तथा ‘उदारीकरण अर्थव्यवस्था’ के भ्रमजाल ने देश में जातों के विभाजन का खतरा पैदा कर दिया है। एक तरफ हरितक्रांति, खुशहाली तथा अधिक अन्नोत्पादन के लक्ष्य के कारण कृषि का अति यंत्रीकरण तथा रसायनिकरण हो रहा है जिसके परिणामस्वरूप धरती की उर्वराशक्ति
में निरंतर ह्रास हो रहा है तथा ‘सेज’ के नाम पर उपजाऊ कृषि भूमि का
सत्यानाश हो रहा है। खैर हमें तो भूमिका रूप में यह कहना था कि किस प्रकार
भारतीय गांवों को नगर में बदलने की कुचेष्टा हो रही है। यह कुचेष्टा हो हीं नहीं रही है बल्कि हो चुकी है। तथा शहरीकरण का ही यह प्रभाव है कि शहरों में गंदी बस्तियां, अपराध, वेश्यावृत्ति, अन्याय सामाजिक बुराइयों को देखा जा सकता है।
खेत की मिट्टी पेड़-पौधों का पेट है। यह मिट्टी अनंत तथा असंख्य जीवों का आधार स्तंभ है। यही मिट्टी पृथ्वी पर निवास करने वाले जीवधारियों
के लिए वरदान है। इस मिट्टी के द्वारा ही हम सभी को भोजन, वस्त्र, ईंधन,
खाद तथा लकड़ियां प्राप्त होती हैं। लगभग 5 से 10 इंच मिट्टी से ही हम कृषि
कार्यों को किया करते हैं।
एक लाख मिट्टी में लाखों सूक्ष्म जीवाणुओं का पाया जाना इस बात का द्योतक है कि वे कृषि को उर्वरा शक्ति प्रदान करते हैं, जो पौधों के आवश्यक तत्व यथा कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, जिंक, लोहा, सल्फर, मैग्निशियम, कॉपर, कैल्सियम, मैगनीज, बोरॉन, ब्डेनम, क्लोराइड, सोडियम, वैनेडियम, कोबाल्ट व सिलिकॉन इत्यादि तत्वों द्वारा मिट्टी से प्राप्त भोज्य पदार्थों से कृषि उपज में शक्ति का संचार होता है तथा अधिक अन्न उत्पादन होता है।
जैविक कृषि में खेत, जीव तथा जीवाशं
का बहुत बड़ा महत्व है। जीवों के अवशेष से जो खाद बनती है। उसे जैविक खाद
तथा उस पर आधारित कृषि को ‘जैविक कृषि’ कहा जाता है। भारत जैसे कृषि प्रधान
देश जहां कि अधिकांश जनता शाकाहारी है। अतः जैविक कृषि एवं गोपालन को व्यवसाय के रूप में अपनाया जा सकता है। यह कृषि कार्य में लगा व्यक्ति कृषि तथा गोपालन से जुड़ा व्यक्ति नंदगोपाल कहलाता है। पाश्चात्य देशों का इतिहास 4000-5000 वर्षों पुराना होगा तो भारतीय कृषि या संस्कृति का इतिहास लाखों वर्ष पुराना है।
यह बताया जा चुका है कि भारतीय कृषि तथा कृषकों के हित की बातों का उल्लेख वेदों में भी दिखाई पड़ता है। आर्थिक अन्नोत्पादन तथा हरितक्रांति के नाम पर रासायनिक खादों तथा खर-पतवारनाशी कीटनाशकों ने जैविक कृषि पर ग्रहण लगा दिया हैतथा संपूर्ण कृ षि से पर्यावरण प्रभावित हो चुका है। परंपरागत खेती या फसल चक्र ही वह प्रक्रिया है जिसको अपना कर संपूर्ण भारतीयों को रोजगार, स्वावलंबन तथा कुटीर उद्योगों का विकास किया जा सकता है तथा इसके माध्यम से, महात्मा गांधी का ‘रामराज्य’ जे. पी. का ‘चौखंभा राज्य’, विनोबा का विश्व ग्राम तथा राष्ट्रॠषि दीनदयाल उपाध्याय के ‘एकात्म मानव’ को दर्शाया जा सकता है।
जैविक कृषि की विशेषता – 1) कम लागत तथा उपलब्धता : जैविक खादों को सल्फर, जिंक तथा अन्य रासायनिक तत्वों की तुलना में स्थानीय स्तर पर उपलब्ध कृ षि
उत्पादों द्वारा अपेक्षाकृत सस्ते दर पर खादों का निर्माण किया जा सकता है
तथा अधिकाधिक जनता द्वारा बर्बाद होने वाली मुद्रा को बचाया जा सकता है।
2) उत्पादन एवं पोषण में अपेक्षाकृत अंतर ः जैविक खादों से उत्पादित
वस्तुओं में गुणवत्ता, पौष्टिकता एवं ठहराव की स्थिति ज्यादा होती है जबकि
रासायनिक खादों से उत्पादित वस्तुओं में साइड इफेक्ट ज्यादा होता है।
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