जैविक/प्राक्रतिक कृषि के द्वारा ही एक बार धन तथा दुग्ध की नदियां बहा सकते हैं। मुझे विश्वास है कि पश्चिमी मॉडल से प्रभावित कृषि वैज्ञानिक विकास के भारतीय मॉडल को आत्मसात करेंगे तथा भारत फिर परम वैभव को प्राप्त करेगा।
Tuesday, April 28, 2015
पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्व
पौधों के लिए आवश्यक पोषक तत्वों का वर्गीकरण
पौधे जडो द्वारा भूमि से पानी एवं पोषक तत्व, वायु से कार्वन डाई आक्साइड तथा सूर्य से
प्रकाश ऊर्जा लेकर अपने विभिन्न भागों का निर्माण करते है।
पोषक तत्वों को पौधों की
आवश्यकतानुसार निम्न प्रकार वर्गीकृत किया गया है।
मुख्य पोषक तत्व- नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश।
गौण पोषक तत्व- कैल्सियम, मैग्नीशियम एवं गन्धक।
सूक्ष्म पोषक तत्व- लोहा, जिंक, कापर, मैग्नीज, मालिब्डेनम, बोरान एवं क्लोरीन।
पौधों में आवश्यक पोषक
तत्व एवं उनके कार्य
- पौधों के सामान्य विकास एवं वृद्धि हेतु कुल 16 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। इनमें से किसी एक पोषक तत्व की कमी होने पर पैदावार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और भरपूर फसल नहीं मिलती ।
- कार्बन , हाइड्रोजन व आक्सीजन को पौधे हवा एवं जल से प्राप्त करते है।
- नाइट्रोजन , फस्फोरस एवं पोटैशियम को पौधे मिट्टी से प्राप्त करते है। इनकी पौधों को काफी मात्रा में जरूरत रहती है। इन्हे प्रमुख पोषक तत्व कहते है।
- कैल्शियम, मैग्नीशियम एवं गन्धक को पौधे कम मात्रा में ग्रहण करते है। इन्हे गौड अथवा द्वितीयक पोषक तत्व कहते है।
- लोहा, जस्ता, मैगनीज, तांबा, बोरोन, मोलिब्डेनम और क्लोरीन तत्वों की पौधों को काफी मात्रा में आवश्यकता पड़ती है। इन्हे सूक्ष्म पोषक तत्व कहते है।
पोषक तत्वों के कार्य
नाइट्रोजन
- सभी जीवित ऊतकों यानि जड़, तना, पत्ति की वृद्दि और विकास में सहायक है।
- क्लोरोफिल, प्रोटोप्लाज्मा प्रोटीन और न्यूक्लिक अम्लों का एक महत्वपूर्ण अवयव है।
- पत्ती वाली सब्जियों और चारे की गुणवत्ता में सुधार करता है।
फास्फोरस
- पौधों के वर्धनशील अग्रभाग, बीज और फलों के विकास हेतु आवश्यक है। पुष्प विकास में सहायक है।
- कोशिका विभाजन के लिए आवश्यक है। जड़ों के विकास में सहायक होता है।
- न्यूक्लिक अम्लों, प्रोटीन, फास्फोलिपिड और सहविकारों का अवयव है।
- अमीनों अम्लों का अवयव है।
पोटेशियम
- एंजाइमों की क्रियाशीलता बढाता है।
- ठण्डे और बादलयुक्त मौसम में पौधों द्वारा प्रकाश के उपयोग में वृद्धि करता है, जिससे पौधों में ठण्डक और अन्य प्रतिकूल परिस्थितियों को सहन करने की क्षमता बढ़ जाती है।
- कार्बोहाइड्रेट के स्थानांतरण, प्रोटीन संश्लेषण और इनकी स्थिरता बनाये रखने में मदद करता है।
- पौधों की रोग प्रतिरोधी क्षमता में वृद्धि होती है।
- इसके उपयोग से दाने आकार में बड़े हो जाते है और फलों और सब्जियों की गुणवत्ता में वृद्धि होती है।
कैल्शियम
- कोशिका भित्ति का एक प्रमुख अवयव है, जो कि सामान्य कोशिका विभाजन के लिए आवश्यक होता है।
- कोशिका झिल्ली की स्थिरता बनाये रखने में सहायक होता है।
- एंजाइमों की क्रियाशीलता में वृद्धि करता है।
- पौधों में जैविक अम्लों को उदासीन बनाकर उनके विषाक्त प्रभाव को समाप्त करता है।
- कार्बोहाइट्रेड के स्थानांतरण में मदद करता है।
मैग्नीशियम
- क्लोरोफिल का प्रमुख तत्व है, जिसके बिना प्रकाश संश्लेषण (भोजन निर्माण) संभव नहीं है।
- कार्बोहाइट्रेड-उपापचय, न्यूक्लिक अम्लों के संश्लेषण आदि में भाग लेने वाले अनेक एंजाइमों की क्रियाशीलता में वृद्धि करता है।
- फास्फोरस के अवशोषण और स्थानांतरण में वृद्दि करता है।
गंधक
- प्रोटीन संरचना को स्थिर रखने में सहायता करता है।
- तेल संश्लेषण और क्लोरोफिल निर्माण में मदद करता है।
- विटामिन के उपापचय क्रिया में योगदान करता है।
जस्ता
- पौधों द्वारा फास्फोरस और नाइट्रोजन के उपयोग में सहायक होता है
- न्यूक्लिक अम्ल और प्रोटीन-संश्लेषण में मदद करता है।
- हार्मोनों के जैव संश्लेषण में योगदान करता है।
- अनेक प्रकार के खनिज एंजाइमों का आवश्यक अंग है।
तांबा
- पौधों में विटामिन ‘ए’ के निर्माण में वृद्दि करता है।
- अनेक एंजाइमों का घटक है।
लोहा
- पौधों में क्लोरोफिल के संश्लेषण और रख रखाव के लिए आवश्यक होता है।
- न्यूक्लिक अम्ल के उपापचय में एक आवश्यक भूमिका निभाता है।
- अनेक एंजाइमों का आवश्यक अवयव है।
मैगनीज
- प्रकाश और अन्धेरे की अवस्था में पादप कोशिकाओं में होने वाली क्रियाओं को नियंत्रित करता है।
- नाइट्रोजन के उपापचय और क्लोरोफिल के संश्लेषण में भाग लेने वाले एंजाइमों की क्रियाशीलता बढ़ा देता है।
- पौधों में होने वाली अनेक महत्वपूर्ण एंजाइमयुक्त और कोशिकीय प्रतिक्रियओं के संचालन में सहायक है।
- कार्बोहाइट्रेड के आक्सीकरण के फलस्वरूप कार्बन आक्साइड और जल का निर्माण करता है।
बोरोन
- प्रोटीन-संश्लेषण के लिये आवश्यक है।
- कोशिका –विभाजन को प्रभावित करता है।
- कैल्शियम के अवशोषण और पौधों द्वारा उसके उपयोग को प्रभावित करता है।
- कोशिका झिल्ली की पारगम्यता बढ़ाता है, फलस्वरूप कार्बोहाइट्रेड के स्थानांतरण में मदद मिलती है।
- एंजाइमों की क्रियाशीलता में परिवर्तन लाता है।
मोलिब्डेनम
- कई एंजाइमों का अवयव है।
- नाइट्रोजन उपयोग और नाइट्रोजन यौगिकीकरण में मदद करता है।
- नाइट्रोजन यौगिकीकरण में राइजोबियम जीवाणु के लिए आवश्यक होता है।
क्लोरीन
- क्लोरीन पादप हार्मोनों का अवयव है।
- बीजों में यह इण्डोलएसिटक एसिड का स्थान ग्रहण कर लेता है।
- एंजाइमों की क्रियाशीलता में वृद्धि करता है।
- कवकों और जीवाणुओं में पाये जाने वाले अनेक यौगिकों का अवयव है।
भूमि शोधन
एक एकड़ भूमि शोधन
जैविक विधि से भूमि शोधन :-
----------------------------
2 किलो ट्रीकोडर्मा
2 किलो स्यूडोमोनास
50 किलो तैयार गोबर खाद में मिला कर ठंडी जगह छाँव में गोबर को फैला दें
उपयुक्त नमी के लिए पानी छिड़के
तीसरे दिन हाथ निकाल दो
पुआल से ढक कर रखें
15 दिन में आपके पास 50 किलो जीव होंगे त्रिकोडर्मा और स्यूडोमोनास
शाम को सूरज ढलने के बाद बुवाई के लिए तैयार खेत में फैला कर जुताई से मिटटी में मिला दो
अगली सुबह उपचारित बीज बो दें
प्राकृतिक विधि से भूमि शोधन :-
--------------------------------------
देसी प्रजाति की गाय के दूध से तैयार चार
किलो दही ताम्बे के बर्तन में पंद्रह दिन तक रक्खे
दही का रंग हरा हो जायेगा उसमे
देसी प्रजाति की गाय का २० दिन पुराना Urine, ३०
लीटर पानी अच्छी तरह मिला कर नम / गीले एक एकर
खेत में सायंकाल फवाहरे से छिडकाव कर दे तथा अगले
दिन सुबह पाटा लगा दे इससे खेत में दीमक व अन्य
कीड़ा लगाने की संभावना बहुत कम हो जाएगी !
किलो दही ताम्बे के बर्तन में पंद्रह दिन तक रक्खे
दही का रंग हरा हो जायेगा उसमे
देसी प्रजाति की गाय का २० दिन पुराना Urine, ३०
लीटर पानी अच्छी तरह मिला कर नम / गीले एक एकर
खेत में सायंकाल फवाहरे से छिडकाव कर दे तथा अगले
दिन सुबह पाटा लगा दे इससे खेत में दीमक व अन्य
कीड़ा लगाने की संभावना बहुत कम हो जाएगी !
Monday, April 27, 2015
क्या है बीज शोधन
क्या है बीज शोधन
रासायनिक या जैविक दवाओं को पानी में डालकर बीज को उसमें अच्छी तरह धोया जाता है। इसके अलावा जो पाउडर वाली दवाएं होती हैं। उनकी निर्धारित मात्रा मिलाई जाती है। प्रत्येक दवा की निर्धारित मात्रा अलग-अलग होती है।
बीज शोधन के फायदे
=जैविक और प्राकृतिक तरीकों से किए गए बीज शोधन से मिट्टी के लाभदायक जीवाणु जीवित रहते हैं। इससे फसल को लाभ मिलता है।
=कृषि भूमि की उर्वरता और उत्पादकता बढ़ती है।
=फसल कटने के बाद बचे हिस्से को चारे के रूप में जानवर बड़े चाव से खाते हैं। उनके लिए यह पोष्टिक अहार है।
=जरूरी रसायनों व कीटनाशकों को सोखने की क्षमता बढ़ती है।
= इससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होता है।
जैविक विधि में प्रयुक्त दवाएं
ट्राइकोडर्मा, स्यूडोमोराल, एजोवेक्टर और राइजोबियम, लैग्यूमिनोसोरम आदि में से एक।
रासायनिक विधि में प्रयुक्त दवाएं
शिरम, कार्टेन्डिलज्म, टेबुकोनाजोल, मेटाले थिसाल आदि में से किसी एक दवा का प्रयोग कर सकते हैं।
=: बीज शोधन रोगों से लड़ने और उत्पादकता बढ़ाने के लिए होता है। इसके लिए किसानों को जानकारों की मदद लेनी चाहिए
रासायनिक या जैविक दवाओं को पानी में डालकर बीज को उसमें अच्छी तरह धोया जाता है। इसके अलावा जो पाउडर वाली दवाएं होती हैं। उनकी निर्धारित मात्रा मिलाई जाती है। प्रत्येक दवा की निर्धारित मात्रा अलग-अलग होती है।
बीज शोधन के फायदे
=जैविक और प्राकृतिक तरीकों से किए गए बीज शोधन से मिट्टी के लाभदायक जीवाणु जीवित रहते हैं। इससे फसल को लाभ मिलता है।
=कृषि भूमि की उर्वरता और उत्पादकता बढ़ती है।
=फसल कटने के बाद बचे हिस्से को चारे के रूप में जानवर बड़े चाव से खाते हैं। उनके लिए यह पोष्टिक अहार है।
=जरूरी रसायनों व कीटनाशकों को सोखने की क्षमता बढ़ती है।
= इससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होता है।
जैविक विधि में प्रयुक्त दवाएं
ट्राइकोडर्मा, स्यूडोमोराल, एजोवेक्टर और राइजोबियम, लैग्यूमिनोसोरम आदि में से एक।
रासायनिक विधि में प्रयुक्त दवाएं
शिरम, कार्टेन्डिलज्म, टेबुकोनाजोल, मेटाले थिसाल आदि में से किसी एक दवा का प्रयोग कर सकते हैं।
=: बीज शोधन रोगों से लड़ने और उत्पादकता बढ़ाने के लिए होता है। इसके लिए किसानों को जानकारों की मदद लेनी चाहिए
मिट्टी की जांच कैसे करें
मिट्टी का नमूना लेने के पहले निम्नलिखित सुझावों पर अवश्य ध्यान दें-
1. वृक्ष और देशी खाद के ढेर के नीचे की मिट्टी न ले।
2. खेत के कोनों एवं मेड़ से एक मीटर अंदर के ओर की मिट्टी न लें।
3. अधिकतर समय पानी भरे रहने वाले एवं नाली के पास के स्थान से मिट्टी न लें।
4. खेत की मिट्टी यदि अलग – अलग है तो नमूना की मिट्टी अलग –अलग लें।
5. उर्वरक, खाद, नमक की बोरी के ऊपर मिट्टी नमूना न सुखायें।
6. खेत की मिट्टी में स्वाभाविक रूप से पाये जाने वाले कंकड़ आदि अलग न करें।
7. मिट्टी नमूना रखने के लिए नई एवं साफ पॉलीथीन का प्रयोग करें।
8. यदि खेत ऊंचा, नीचा है और फसल अलग- अलग बोते हैं तो मिट्टी का नमूना अलग – अलग लें।
9. चाही गई जानकारी नमूना पत्रक में भरकर मिट्टी के साथ अवश्य भेजें।
10. नमूना पत्रक उपलब्ध न होने पर सादे कागज में नाम, पता, रकबा, खेत निशानी, सिंचाई स्त्रोत, असिंचित, ली गई फसल, प्रस्तावित अगली फसल दिनांक, अन्य संबंधित जानकारी लिखकर मिट्टी नमूना के साथ भेजें।
11. अधिकतम एक हेक्टेयर क्षेत्रफल तक के खेत से एक नमूना लें।
मिट्टी का नमूना कैसे लें (तरीका) ?
जिस खेत की मिट्टी लेना हो उसमें अनिश्चित आधार पर दस से बारह बिंदुओं/जगहों का चुनाव करें। चुने गये बिंदुओं/स्थानों की उपरी एक-दो सेमी. सतह साफ करके घास, पत्थर, कचड़ा आदि हटा दें। खुरपी की सहायता से चुने गये स्थानों में व्ही आकार का 6 – 8 इंच गहरा कट लगाकर तसला
या बाल्टी में रखते जायें। खेत से लायी गई मिट्टी को साफ फर्श के ऊपर
अखबार में बिछाकर छाया में सुखा लें। अब मिट्टी से घास, गोबर, पत्थर के टुकडे
फसल अवशेष निकालकर फेंक दें व मिट्टी को भुरभुरी बना लें। अब मिट्टी के
ढेर को लगभग 3 इंच की मोटाई में गोलाकार रूप देकर सीधी रेखा चार बराबर
भागों में बाँटकर आमने- सामने की दो भाग मिट्टी हटा दें। शेष दो भाग को मिलाकर इसे भी चार भागों में बाँटकर दो आमने – सामने के भाग अलग करें। ऐसा तब करें जब कि शेष दो भाग की मिट्टी (500 ग्राम) आधा किलोग्राम के लगभग हो जाये। साफ पॉलीथीन में शेष आधा किलोग्राम मिट्टी भरकर धागा से बांध दें। दूसरी नई पॉलीथीन में मिट्टी वाली पॉलीथीन, जानकारी सहित नमूना पत्रक रखकर धागा से पॉलीथीन को बॉंध
दें। अब आपका यह मिट्टी नमूना जांच के लिए तैयार है। जल्दी से जल्दी
मिट्टी नमूना कृषि विभाग कृषि विस्तार अधिकारी के द्वारा कृषि विज्ञान
केन्द्र मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला में जांच के लिये भेजेँ॥
जैविक कृषि दर्शन
जैविक कृषि और ग्रामीण स्वावलंबन
- डॉ. मनोज चतुर्वेदी
भारत गांवों का देश है जहां कि 70 प्रतिशत जनसंख्या आज भी गांवों में रहती है। यह ठीक है कि भूमंडलीकरण तथा उदारीकरण
अर्थव्यवस्था में ग्रामीण जनता का शहरों की तरफ बहुत तेजी से पलायन हो रहा
है तथा हो चुका है। इसका मतलब यह नहीं है कि देश की छह लाख से ज्यादा
जनसंख्या गांवों में से समाप्त हो चुकी है। यह ठीक है कि विकास के नाम पर
गांवों को शहरों के रूप में बदलने का प्रयास अनवरत जारी है तथा दिल्ली-एन सी आर जैसे शहरों का बहुत तेजी से विकास हुआ है। जहां पर विकास के नाम पर नंदीग्राम तथा सिगुर जैसे विवादित स्थल भारतीय क्षितिज पर दिखाई दे रहे हैं वहीं पर झारखंड, छत्तीसगढ़ तथा उड़ीसा के ऐसे गांव दिखाई पड़ रहे हैं। जहां पर कभी-कभार ग्रामीणों का गुस्सा सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों पर दिखाई पड़ता है। वस्तुतः भूमंडलीकरण तथा उदारीकरण के नाम पर गांवों का सत्यानाश करके अपनी झोली भरने का प्रयास जारी है। देश के राजनीतिज्ञों को 20 रुपये पर गुजर-बसर करने वाली जनता से कुछ लेना-देना नहीं है लेकिन आज वही जनता राजनीतिज्ञों के लिए थोक वोट बैंक है तथा वहीं वे जाते हैं।
राजनैतिक दलों तथा सामंतों द्वारा फैलाई गई ‘सेज’ तथा ‘उदारीकरण अर्थव्यवस्था’ के भ्रमजाल ने देश में जातों के विभाजन का खतरा पैदा कर दिया है। एक तरफ हरितक्रांति, खुशहाली तथा अधिक अन्नोत्पादन के लक्ष्य के कारण कृषि का अति यंत्रीकरण तथा रसायनिकरण हो रहा है जिसके परिणामस्वरूप धरती की उर्वराशक्ति
में निरंतर ह्रास हो रहा है तथा ‘सेज’ के नाम पर उपजाऊ कृषि भूमि का
सत्यानाश हो रहा है। खैर हमें तो भूमिका रूप में यह कहना था कि किस प्रकार
भारतीय गांवों को नगर में बदलने की कुचेष्टा हो रही है। यह कुचेष्टा हो हीं नहीं रही है बल्कि हो चुकी है। तथा शहरीकरण का ही यह प्रभाव है कि शहरों में गंदी बस्तियां, अपराध, वेश्यावृत्ति, अन्याय सामाजिक बुराइयों को देखा जा सकता है।
खेत की मिट्टी पेड़-पौधों का पेट है। यह मिट्टी अनंत तथा असंख्य जीवों का आधार स्तंभ है। यही मिट्टी पृथ्वी पर निवास करने वाले जीवधारियों
के लिए वरदान है। इस मिट्टी के द्वारा ही हम सभी को भोजन, वस्त्र, ईंधन,
खाद तथा लकड़ियां प्राप्त होती हैं। लगभग 5 से 10 इंच मिट्टी से ही हम कृषि
कार्यों को किया करते हैं।
एक लाख मिट्टी में लाखों सूक्ष्म जीवाणुओं का पाया जाना इस बात का द्योतक है कि वे कृषि को उर्वरा शक्ति प्रदान करते हैं, जो पौधों के आवश्यक तत्व यथा कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, जिंक, लोहा, सल्फर, मैग्निशियम, कॉपर, कैल्सियम, मैगनीज, बोरॉन, ब्डेनम, क्लोराइड, सोडियम, वैनेडियम, कोबाल्ट व सिलिकॉन इत्यादि तत्वों द्वारा मिट्टी से प्राप्त भोज्य पदार्थों से कृषि उपज में शक्ति का संचार होता है तथा अधिक अन्न उत्पादन होता है।
जैविक कृषि में खेत, जीव तथा जीवाशं
का बहुत बड़ा महत्व है। जीवों के अवशेष से जो खाद बनती है। उसे जैविक खाद
तथा उस पर आधारित कृषि को ‘जैविक कृषि’ कहा जाता है। भारत जैसे कृषि प्रधान
देश जहां कि अधिकांश जनता शाकाहारी है। अतः जैविक कृषि एवं गोपालन को व्यवसाय के रूप में अपनाया जा सकता है। यह कृषि कार्य में लगा व्यक्ति कृषि तथा गोपालन से जुड़ा व्यक्ति नंदगोपाल कहलाता है। पाश्चात्य देशों का इतिहास 4000-5000 वर्षों पुराना होगा तो भारतीय कृषि या संस्कृति का इतिहास लाखों वर्ष पुराना है।
यह बताया जा चुका है कि भारतीय कृषि तथा कृषकों के हित की बातों का उल्लेख वेदों में भी दिखाई पड़ता है। आर्थिक अन्नोत्पादन तथा हरितक्रांति के नाम पर रासायनिक खादों तथा खर-पतवारनाशी कीटनाशकों ने जैविक कृषि पर ग्रहण लगा दिया हैतथा संपूर्ण कृ षि से पर्यावरण प्रभावित हो चुका है। परंपरागत खेती या फसल चक्र ही वह प्रक्रिया है जिसको अपना कर संपूर्ण भारतीयों को रोजगार, स्वावलंबन तथा कुटीर उद्योगों का विकास किया जा सकता है तथा इसके माध्यम से, महात्मा गांधी का ‘रामराज्य’ जे. पी. का ‘चौखंभा राज्य’, विनोबा का विश्व ग्राम तथा राष्ट्रॠषि दीनदयाल उपाध्याय के ‘एकात्म मानव’ को दर्शाया जा सकता है।
जैविक कृषि की विशेषता – 1) कम लागत तथा उपलब्धता : जैविक खादों को सल्फर, जिंक तथा अन्य रासायनिक तत्वों की तुलना में स्थानीय स्तर पर उपलब्ध कृ षि
उत्पादों द्वारा अपेक्षाकृत सस्ते दर पर खादों का निर्माण किया जा सकता है
तथा अधिकाधिक जनता द्वारा बर्बाद होने वाली मुद्रा को बचाया जा सकता है।
2) उत्पादन एवं पोषण में अपेक्षाकृत अंतर ः जैविक खादों से उत्पादित
वस्तुओं में गुणवत्ता, पौष्टिकता एवं ठहराव की स्थिति ज्यादा होती है जबकि
रासायनिक खादों से उत्पादित वस्तुओं में साइड इफेक्ट ज्यादा होता है।
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